चिड़िया की बात बेमानी है
हमें फ़िक्र अब किसकी ?
बिकने लगा पानी है
सभी जानते बात यह की
आविष्कारो की ये शैतानी है
मना रहे जैव संरक्षण दिवस क्यों ?
हमें तो भौतिक समृद्धि लानी है
बढ़ गया जेब खर्च का भार
हावी हो चला भ्रष्टाचार
हाथी तोड़ने लगे घरों को
शेर चीते की चली राह गाँव शहर को
कल भालू ने घर खरीदा है
मोहल्ले में नहीं उसके मधुमक्खियों का डेरा है
कौवा खरीदता अब बोतलबंद पानी है ?
गाय घोड़े की भी तो ट्रक ही सवारी है
देखो जंगल का नहीं कोई रखवाला है
विकास ही जो विनाश का कारण बन आया है
कोई कहता जंगल काट खेत बनाउंगा
जब तक जंगल न हटे भेड़ बकरियां खूब चराऊंगा
वो कहता हिरन से मेरा क्या वास्ता
दूजे को चाहिए प्लेट में बतौर नाश्ता
धन्य हो तुम अहिंसावादी
खेत हटा उद्योग कालोनी जो बसा दी
पूँजीवाद का खेल निराला है
बूहुहु कर रो रहा जंगल सारा है
पानी पानी कर दौड़ रहा खरगोश
कछुआ पडा है कीचड की चाह तक में बेहोश
चोंच खुली रख दिख रही चिड़िया प्यासी
कोई बचाने जाए, उसकी उडाओ हांसी
अब बची किसी की खैर कहाँ
दूर ग्रहों पर खोज रहे अब नया जहां
काट रहे डाली वह, जिस पर ख़ुद बैठे हैं
कर रहे विज्ञान का भरोसा जो आँखें तरेरे है
क्या ढूंढें जायेंगे मछली , मेंढक , स्नेल्स अब जहरीले पानी में ?
जैव विविधता दिवस मना रहे बैठे हैं हम हैरानी में
Wednesday, May 25, 2011
जीवविज्ञान या जीवन बनाम विज्ञान?
जंगल हो गया सूना
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