Wednesday, May 25, 2011

जीवविज्ञान या जीवन बनाम विज्ञान?

जंगल हो गया सूना

चिड़िया की बात बेमानी है
हमें फ़िक्र अब किसकी ?
बिकने लगा पानी है
सभी जानते बात यह की
आविष्कारो की ये शैतानी है
मना रहे जैव संरक्षण दिवस क्यों ?
हमें तो भौतिक समृद्धि लानी है
बढ़ गया जेब खर्च का भार
हावी हो चला भ्रष्टाचार
हाथी तोड़ने लगे घरों को
शेर चीते की चली राह गाँव शहर को
कल भालू ने घर खरीदा है
मोहल्ले में नहीं उसके मधुमक्खियों का डेरा है
कौवा खरीदता अब बोतलबंद पानी है ?
गाय घोड़े की भी तो ट्रक ही सवारी है
देखो जंगल का नहीं कोई रखवाला है
विकास ही जो विनाश का कारण बन आया है
कोई कहता जंगल काट खेत बनाउंगा
जब तक जंगल न हटे भेड़ बकरियां खूब चराऊंगा
वो कहता हिरन से मेरा क्या वास्ता
दूजे को चाहिए प्लेट में बतौर नाश्ता
धन्य हो तुम अहिंसावादी
खेत हटा उद्योग कालोनी जो बसा दी
पूँजीवाद का खेल निराला है
बूहुहु कर रो रहा जंगल सारा है
पानी पानी कर दौड़ रहा खरगोश
कछुआ पडा है कीचड की चाह तक में बेहोश
चोंच खुली रख दिख रही चिड़िया प्यासी
कोई बचाने जाए, उसकी उडाओ हांसी
अब बची किसी की खैर कहाँ
दूर ग्रहों पर खोज रहे अब नया जहां
काट रहे डाली वह, जिस पर ख़ुद बैठे हैं
कर रहे विज्ञान का भरोसा जो आँखें तरेरे है
क्या ढूंढें जायेंगे मछली , मेंढक , स्नेल्स अब जहरीले पानी में ?
जैव विविधता दिवस मना रहे बैठे हैं हम हैरानी में

Tuesday, May 3, 2011

पानी के यक्ष , नाग .............??

"जल ही जीवन है"। "जल ही अमृत है"। "पानी बचाईये - जीवन बचाईये "। जैसे कई स्लोगन्स से हमारा हर रोज़ वास्ता पड़ता है । एक दिन सड़क पर चलते एक अजीब नज़ारे से सामना हुआ। पानी से भरा एक टैंकर जिस पर "पानी का मोल जानिये , हर बूंद को बचाईये" लिखा था, धीमी रफ़्तार से भीड़भाड़ भरी सड़क से गुजर रहा था। पानी का वाल्व खुला था और पानी सड़क पर बह रहा था। एक युवक इस टैंकर के पीछे दौड़ते हुए बाल्टी में पानी भरने लगा।

चाय की चुस्कियां लेते लोग उसे देख रहे थे। उसके इस कार्य को देख वे हंसने लगे। जब वह तुरंत ही पानी ले वापस लौटा तो उन्होंने उससे पूछा : "ये क्या तरीका है पानी भरने का? "

युवक ने जवाब दिया : "गर्मी के दिन हैं। पानी की मारामारी है। पर अपनी किस्मत है के ये पानी के टैंकर दिनभर सामने से निकलते रहते हैं। तो.......अपन को कहीं भटकना नहीं पड़ता। फिर ढुलते इस पानी को बचाने का मौका भी मिल ही जाता है न।"

"तो.... जितने भी टैंकर यहाँ से गुजरते हैं सभी से पानी बहता रहता है क्या?" किसी ने पूछा। कभी कभी नहीं भी गिरता युवक ने कहा। " अच्छा है भाई " आपस में निगाहें सुकून महसूस करते मगर युवक अपनी झोंक में कहता गया " तब उसका वाल्व खोल कर भरte हैं?

उन चाय पी रहे लोगो को पानी का मूल्य अब समझ में आने लगा तो उन्होंने पूछा कि ऐसे कितना पानी भर लेते हो दिन भर में?

दुकानदार भी उनकी बाते सुन रहा था । युवक पर जोर से चीखा और बोला "दिन भर बातें ही करेगा क्या? ये चाय उधर पहुंचा जल्दी से चल...."। युवक ने फुर्ती से चाय पहुंचाते हुए जवाब दिया : " अरे साब ! पानी की पूर्ती हो जाती है हमारी। फिर सवेरे नल भी तो थोडा बहुत पानी पिचक ही जाता है न।"

वह वाल्व तुमने बंद क्यों नहीं कर दिया ? कोई बोला। "अरे साहब उसे छेड़ नहीं सकते आपको पता नहीं हाथ लगाते ही वो फूट पड़ता है।"

नगर निगमों , पालिकाओं द्वारा गर्मी के दिनों में पानी की आपूर्ति के लिए टैंकर किराए पर चलाए जाते हैं ।
अभी बात चल ही रही थी की युवक ने इशारा करते हुए बताया कि वो टैंकर इन सज्जन का है, बस फिर क्या था। सभी लोग टैंकर मालिक को आड़े हाथों लेने की तैयारी करने लगे। टैंकर मालिक अपनी मोटरसायकल से आकर चाय पीने रुका था और दुकान पर आता देख युवक ने उसका परिचय दे दिया था। अगले टैंकर को आता देख वह बाल्टी ले कर अपनी तैयारी में लगा था ।
"क्यों साहब? पानी का टैंकर आपके पास भी तो है न?" सवाल से चोंककर लगभग सकपकाते हुए उसने जवाब दिया "हां" किन्तु वह अभी नगरनिगम में अनुबंधित है।" शादी ब्याह के मौसम में कहीं यह प्रश्न न पूछा गया हो इसके पूर्वाग्रह से प्रेरित उसका उत्तर था।
"तो फिर आप वाल्व ठीक नहीं करा सकते क्या?" किसी ने लट्ठ ठोका
"अरे साहब! अभी आप जानते नहीं हो" उसने अपनी जेब टटोलकर कागज़ निकाले और आगे करते हुए बताया कि"अब तक दस वाल्व इस सीज़न में बदलवा चूका हूँ लो ये बिल देख लो। पर लोग भी न पानी का मोल नहीं करते, उनको तो सिर्फ अपनी पड़ी रहती है। टैंकर के पहुंचाते ही चारों तरफ से टूट पड़ते हैं, अपनी जल्दी में नुकसान की कोई परवाह ही नहीं है उनको। कितना नुकसान पानी और पैसे का होता है....हमारी सेवा को कोई क्या समझे।"
पानी के संवाद कि चटखारेदार चर्चा मुझ तक पहुंची। किसी ने बताया कि गए साल २०१० में महाकाल नगरी उज्जैन में २१ दिनों के अंतराल के बाद नक् से पेयजल पहुंचा था। तब उन दिनों वे अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ गए थे। पानी का टैंकर आया तो कोई ऊपर जा चढ़ा, किसी ने वाल्व पर अधिकार जमा लिया, किसी ने टैंक में पाईप डाल कर सायफन से पानी लेना चालू कर दिया। उन्होंने भी ऊपर चढ़ कर बाल्टी से पानी भरना चालु किया और अपने मेजबान महोदय कि सहायता करना शुरू की। पानी की भरी बाल्टी उन्होंने नीचे खड़े पडोसी को क्या थमाई वो पानी ही ले उड़े। उनकी समझ में बात आई तो एतराज़ जताते हुए उन्होंने पूछा "यह क्या वो बाल्टी मैंने अपने लिए भरी थी आप कैसे ले गए? उन्होंने हँसते हुए जवाब दिया "तो क्या हुआ हम भी तो आप ही के है न?"
बस फिर क्या था अपने टावेल और कपडे ले वे उनके घर जा धमके। अब पडोसी जी का सर चढ़ गया कहने लगे "जानते नहीं पिछले पंद्रह दिनों से पानी नल में आ नहीं रहा और आप तो हमारे पडोसी के मेहमान हो हमारे यहाँ स्नान क्यों?"
"भाई अभी थोड़ी देर पहले आप ही ने कहा था न की हम भी आप ही के है? तो फिर भला अब एतराज़ क्यों?" जैसे तैसे आधी बाल्टी पानी में स्नान और कपडे धोने का काम करना पडा।
अब कल की बात है, महापौर जी को जल संवाद के लिए अतिथि आमंत्रित किया गया उन्होंने अपने अनुभव सुनाए। सुबह ६ बजे उठना पड़ता है और देर रात तक पानी के लिए लोग सोने नहीं देते। सुबह दौरे पर निकला तो देखा की एक महिला ने २०० लीटर पानी का ड्रम जो पानी से लगभग आधा भरा था ज़मीन पर धकेल दिया मैंने पूछा "माई ! ये क्या किया? इतना पानी वैसे ही नाली में उड़ेल दिया? क्यों?" तो जवाब मिला "नया पानी आ गया है तो जूने पानी का क्या?" अब समझने की बारी थी नए और पुराने पानी के बारे में।
दूसरा दृष्य और भी मजेदार था भैंस को नल में मोटर लगाकर पानी खींच नहलाया जा रहा था। उसे जब कहा की "पानी का संकट है गर्मी के दिनों में और तुम्हे कोई परवाह ही नहीं। ये क्या कर रहे हो।" तो जवाब मिला : "ये क्या तुम्हारे पिताजी का पानी है? पैसे भरता हूँ निगम को, और तुम हो कौन मुझे कहने वाले?" जब किसी ने बताया कि ये महापौर हैं तो शर्म कर उसने आधा घंटा कम नहलाया भैंसों को उस दिन।
मेरे एक मित्र हैं किसी कारण उनकी दाढ़ी बढ़ आई , पर्यावरण पत्रिका के सम्पादक हैं सो दाढ़ी की महिमा जल बचाने में जताने लगे। यह तो ठहरा मैं तो मैंने पूछ ही लिया :" दाढ़ी को नहाते वक्त साबुन तो नहीं लगाते हो न?" वे झेंप गए की पानी का खर्च गिना जाने लगा है।
अब सवाल है क्या करें? क्या न करें? मुझे याद आया महाभारत काल का पानी का यक्ष जो पांडवों से सवाल करता रहा और आखिर में युधिष्ठिर के जवाबों से संतुष्ट हुआ था। लेकिन आज तो पानी नित नए यक्ष, नाग और किन्नर पैदा हो रहे हैं। जबकि जल तो स्वयं ही वरुण देव है ही।
आपको बता देता हूँ यक्ष वे हैं जो जो पानी का बेतरतीब इस्तेमाल करते हैं और आपके समक्ष ढीठ सवाल खड़े करते रहते हैं, आपकी खिल्ली उड़ाते हैं, व्यवस्था पर कटाक्ष करते हैं। नाग वे है जो पानी को अपनी कुंडली में व्यवसाय की खातिर जकडे बैठे हैं, नित नए तरीके पानी बेचने के ढूँढते रहते हैं और पैसे के घमंड से फुफकारते रहते हैं। अब रहे किन्नर तो उन्हें बताने की जरूरत है क्या? समझ ही लो ......हाँ।