Friday, February 18, 2011
अस्पताल का सांप?
सरकारी अस्पताल का परिसर जीर्ण शीर्ण भवनों का स्थान था। तीस बरस से पहले बने इस अस्पताल के भवन का भी बुरा हाल था। पतरे की छत पर बिछे खपरैल टूट गए थे और अब आधे अधूरे ही बचे थे। पतरे भी सड़ गए थे। सपोर्ट के लिए लगा लकड़ी का बीम तड़क गया था । दरवाजों की हालत भी टूटी फूटी हो चली थी। पलस्तर भी उखड गया था।अस्पताल में चिकित्सकों के दो कमरे थे। एक कमरा दवाई वितरण के लिए कंपाउडर के सुपुर्द था । मरहम पट्टी कक्ष और शस्त्रक्रिया कक्ष की व्यवस्था दी गई थी। जैसे जैसे समय बीता प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में सुविधाए बढ़ी। बिस्तर , एम्बुलेंस ,प्रयोगशाला के अलावा प्रसूतिगृह का निर्माण भी हुआ।अमूमन अस्पतालों के नजदीक नई आबादी विस्तारित हुई और सड़क के आसपास आम इमली के पेड़ भरपूर थे। अस्पताल की पिछली दीवार के समीप एक भयावह ईमली का पेड़ था। भयावह इसलिए कि उसमे अजीब सी खोह और आकृतियाँ निर्मित हो आई थी। एक कोटर में उल्लुओं ने बसेरा कर लिया था। दिन के समय में भी आसपास खडी मेहंदी की बागड़ झाड़ियों से भरा उंचा सा टीला और वहां का डरावना एहसास सहसा किसी को जाने से रोक दिया करता था सो यह स्थान निर्जन बना रहा।अस्पताल में प्रसूतिगृह क्या बना यहाँ सभी तरह के काम होने लगे। कुछ घरों में इसने जहां घरों के चिराग रोशन किए तो कई अवांछित अवैध संताने गिराने का धंधा भी फलाफूला। खासतौर पर कन्याभ्रूण हटाए जाने का। अस्पताल में महिला चिकित्सक की नियुक्ति तो हुई मगर सिस्टर मेरिंडा की यहाँ रौबदारी रही। होती भी क्यों न? सभी गाँव वालों के अच्छे बुरे की मदद इसी से मिलती जो थी।ईमली का यह पेड़ और इसके नजदीक का यह वीराना अनचाहे गर्भ की कब्रगाह बन गया बरसों तक इस पेड़ के नीचे कई भ्रूण दफ़न होते रहे। दिन में कौवे और रात में चमगादड़ यहाँ डेरा डाले रहते।अस्पताल की इस बिल्डिंग को पूरी तरह तोड़कर नया भवन बनाए जाने के लिए शासन ने पैसे मुहैय्या करवाए। ठेकेदारों से इसे तोड़े और बनाए जाने के टेंडरों की विज्ञप्ति प्रसारित हुई।अस्पताल को जब तक नया भवन नहीं बन जाता पंचायत भवन में स्थानांतरित किए जाने की व्यवस्था दी गई। अब अस्पताल को खाली कराया जाना था। सबसे पहले स्टोर में जमा सामान हटाने का काम किया जाने की शुरुआत हुई। कंपाउडर, टेक्नीशियन अपने काम में संलग्न थे और पीछे का कमरा जो कई सालों से बंद पडा था खोला जाकर उसमे रखे सामान की लिस्ट बनानी थी फिर उसे कहीं अन्यत्र रखवाया जाना था। दरवाज़ा खोलने के सारे प्रयास असफल हो गए तो प्रभारी चिकित्सक को बताया गया , उन्होंने कहा की जब भवन ही तोड़ देना है तो दरवाज़े का क्या?..... तोड़ डालो दरवाज़े को। अस्पताल में कभी एक्स रे के लिए बनाया मगर कभी उपयोग में न लाया गया कमरा बड़ा ही अंधियारा था। यहाँ लाईट की व्यवस्था भी नहीं दी गई थी। इसकी पिछली दीवार पर एक्जास्ट के लिए गोल खिड़कीनुमा निर्माण भी था जो इमली की बढ़ आई डाली से सट आया था। कमरा अनुपयोगी रहा था और बिजली प्रकाश की व्यवस्था न होने से दिन में भी इस्तेमाल नहीं हो सकता था।दरवाजे को तोड़े जाने का निर्णय सुनकर सभी कमरे के सामने इकट्ठे हो गए । दरवाज़े को खींचा धकेला गया । किसी ने लकड़ी फंसा कर तोड़ डालने की बात कही। रूटीन के काम करने वाले शासकीय कर्मचारी अपने काम से काम रखते हैं सो दरवाज़ा तोड़ने के लिए बाहर से मजदूर बुलाया जाना तय हुआ। हरिया ने दरवाज़ा तोड़ने के लिए सौ रुपये मांगे तो भावताव हुआ पैसे कहाँ से आयेंगे इस पर चर्चा हुई। जैसे तैसे वह अस्सी रुपये में काम करने को तैयार हुआ। गुस्से में हरिया ने एक पत्थर उठाया और दरवाज़े पर दे मारा । पत्थर से दरवाज़ा टुटा तो नहीं मगर उसमे एक छेद जैसा पड़ गया । पत्थर उठाने मे हरिया को लगा की कमरे मे से सांप जैसा बाहर आया है तो वह भागा । उसे देख दुसरे भी भागे । कुछ समझ मे nahi aayaa की हुआ क्या है ? हांफते हुए हरिया ने वहां सांप होने की बात कही और वो वहां जाने को अब तैयार भी नहीं था। कह रहा था पैसे गए भाड़ में दूसरी जगह दाडकी कर कमा लूंगा अब वहां अँधेरे में तो बिलकुल ही नहीं जाऊँगा। एक तो अस्पताल डरावना ऊपर से भूतहा कमरा। न बाबा ना मुझे नहीं करना काम। अब सांप के होने की बात से भयभीत वहां जाने को तैयार नहीं था । किसी ने सुझाया की दीपक लगाओ , पूजा करो अगरबत्ती लगाओ तो शायद नाग देवता चले जाए ऐसे कहाँ कहाँ और कब कब हुआ की बाते भी हुई । अब अगरबत्ती दीपक ले नाग देवता से वहां से चले जाने की गुहार भी हुई । मगर वह मोटासा सांप तस से मास ना हुआ अब सब अपनी खैरियत के नाम पर पैसा खर्चने को तैयार हो गए । कन्हैया जो हरिजन से ड्रेसर बन गया था ने सबसे पैसे ऐंठे और सायकल उठाकर किसी सांप पकड़ने वाले को लेने चला गया । बाहर मरीज़ थे और भीतर सांप । मरीजों का जैसे तैसे इलाज की व्यवस्था देने के लिए नीम के नीचे टेबल लगाकर व्यवस्था की गई। सांप बाहर निकलते वक्त कहीं भी गुस जो सकता था । यह चर्चा भी थी की सांप आया कहाँ से होगा । इतना मोटा सांप कभी किसी ने पहले देखा भी जो ना था । सांप कैसा भी हो जहरीला हो न हो डरावना तो होता ही है। कन्हैया अपनाने पीछे सपेरे को बैठा लाया था और पैसे की बात किसी और से न करने की हिदायत भी दे कर ही लाया । सपेरे ने भीतर जाकर देखा फिर कन्हैया से मोल भाव करने लगा जैसे तैसे सौदा चार सौ रुपये में तय हुआ । नाग देवता ने बचे पैसे उसे बक्सिश में दे दी थे तो वह खुश हो गया ।सपेरे ने झोले में से चिमटा निकाला और लकड़ी लेकर वह जा घुसा भीतर । उसके भीतर घुसते ही सब के सब पीछे हो लिए की वह सांप कैसे पकड़ता है। सपेरे ने सांप को देखा तो वो वहीँ था । लकड़ी से हिलाया तो वह फुदका । सपेरा डर गया और पीछे आ गया । कहने लगा साब बड़ा खतनाक जनावर है उछलता भी है। चिमटे से ही पकड़ के काबू करना पडेगा । वह फिर अँधेरे में घुसा और चिमटा लेकर झपट पडा मगर सांप चिमटे से छुट गया जानकर वह वहीँ धडाम से जा गिरा । और सांप जो सांप था ही नहीं वरन मोटी मोटी आँखों वाला मोटा सा एक कबरबिज्जू था जो तेजी से निकल कर खड़े लोगों के बीच से निकला । लोग इस अप्रत्याशित घटना से बिदके घबरा से गए और उनमे से कुछ गिर पड़े । डाक्टर साहब को टेबल आ लगी । कन्हैय्या सकते में था जैसे जैसे बात समझ में आने लगी और सपेरे के गिर जाने की बात पता चली तो सारे अस्पताल में हंसी की फुहारे चल पड़ी । आज भी सारा गाँव सपेरे को चिमटा दिखा चिढाता है और जब कभी सांप की खबर सुनाई पड़ती है कबर बिज्जू याद आता है जो अस्पताल में अवैध और कन्या भ्रूण खाने को रहने लगा था ।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment